राज सक्सेना
राहुल गांधी को मोदी से यह जबरदस्त शिकायत है कि वे भारत चीन सीमा पर चीन को लाल आँखें क्यों नहीं दिखाते। उन्हें यह भी शिकायत है कि जब सीमा पर चीन बेहूदी हरकतें कर रहा है तो वे चीन से व्यापार बंद क्यों नहीं करते । केवल वे ही नहीं, विरोध पक्ष में सबसे मुखर ओवैसी भी इसी तरह की उकसाने वाली बातें करके किसी भी प्रकार सीमा पर ऐसी स्थिति ला देने के प्रयास में हैं कि भारत और चीन के बीच युद्ध की स्थिति बन जाय या फिर युद्ध शुरू ही हो जाय। बार बार मोदी को उकसाने के लिए उन्हें छप्पन इंच के सीने और आँख में आँख डाल कर बात करने को ललकारा जा रहा है मगर वे यह भूल जाते हैं कि मोदी कभी कोई कच्चा हाथ डालने की नीति पर चलने वाले नहीं रहे हैं। इतिहास गवाह है कि उन्होंने अपने दुश्मनों को बहुत शान्ति और धैर्य के साथ ठिकाने लगाया है चाहे वह उनका राजनैतिक विरोधी हो या कोई राज्याध्यक्ष, और यही वह कर भी रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि चीन इस समय सैन्य और आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित है जबकि भारत जब से मोदी आये हैं तब से इन दोनों स्तरों पर अपनी पहचान बनाने के लिए तेजी से चलने के प्रयास ही कर पा रहा है।
यह सर्वविदित है कि कोई भी देश युद्ध की विभीषिका में फंसने पर बर्बादी के कगार पर खड़ा हो जाता है और उसे फिर से उबरने में एक अनापेक्षित लम्बा काल लग जाता है। मोदी किसी भी दशा में यह स्थिति नहीं लाना चाहते क्योंकि इससे देश गर्त में चला जायेगा। इसलिए पहले वे सैनिक साजोसामान की स्थिति में अपनी स्थिति मजबूत करके ही चीन से उलझना चाहते हैं। चीन भी जानता है कि भारत का नेतृत्व कितना सशक्त है, इसलिए वह भी कोई पंगा नहीं लेना चाहता है।
जहां तक आर्थिक क्षेत्र में चीन पर निर्भरता का प्रश्न है पिछली सरकारों ने चीन के साथ तरह तरह के अनुबंध करके देश के व्यापार को चीनी निर्भरता के मकडजाल में इस तरह से उलझा दिया है कि बड़े धैर्य के साथ ही उससे बाहर निकला जा सकता है और यही मोदी सरकार कर भी रही है। दिक्कत यह है कि हम लोग आर्थिक स्तर पर व्यापार के संबंध में चीन पर ज्यादा ही निर्भर हैं। इसमें प्रधान रूप से जो बात निकल कर सामने आ रही है। वह यह है कि हमारी जो इंडस्ट्रीज हैं, या जो हमारे यहां पर कारोबार हैं, तैयार माल को लेकर चीन पर काफी निर्भर हैं। हमारे यहां पर जो कारखानों में या औद्योगिक क्षेत्र में जिस तरीके का हम बड़ा प्रोडक्शन करते हैं, उसमें जो तकनीकी सामान हैं, उसमें जो छोटे-छोटे पुर्जे हैं, उसमें से काफी ज्यादा चीजों को चीन बनाता है। उनका औद्योगिक स्तर काफी ज्यादा है। वहां श्रम का जो खर्च है, वो काफी कम होता है। इस तरीके से हम लोग उन पर कई तरीके से निर्भर रहते हैं। हमारे यहां पर औद्योगिक क्षेत्र को चलाने के लिए, प्रोडक्शन के लिए, जो सामान चाहिए, उसके लिए हम उनकी तरफ देखते हैं, उनकी तरफ हम उम्मीद रखते हैं। इस तरीके से हम लोग उस सप्लाई चेन में काफी जुड़े हुए हैं। चीन से बंधे हुए हैं। बहुत जल्दी किसी तरीके से हम चीन से छुटकारा पा लें, व्यापार एकदम से बंद कर लें, रातोंरात उसमें बदलाव संभव नहीं है। सरकार धीरे-धीरे कोशिश कर रही है, इसका एक सबसे ताजा उदाहरण आपके सामने प्रस्तुत है।
जब निहित कारणों से रूस को छोडकर सभी बड़े राष्ट्राध्यक्ष टी 20 में भारत आ रहे हैं तो शी जिनपिंग क्यों नहीं आ रहे। उसका असली राज मोदी सरकार द्वारा शी जिनपिंग को अब तक का मारा गया सबसे बड़ा आर्थिक तमाचा है। चीन जानता है कि भारत दुनिया में इस समय सबसे तेजी से बढ़ता ऑटो बाजार है। जापान को पीछे छोड़कर भारत कार की खरीद बिक्री में तीसरे नंबर पर पहुंच गया है और व्यापार विशेषज्ञों के अनुसार 2026 तक भारत दूसरे नंबर पर पंहुच जाएगा।
इस समय इलेक्ट्रिक कारों की बेहद मांग है और आपको जानकर आश्चर्य होगा कि टेस्ला के बाद दूसरे नंबर की बड़ी इलेक्ट्रिक कार कंपनी बीवाइडी चीन की है। टेस्ला और बीवाइडी में उत्पादन को लेकर कोई बहुत ज्यादा अंतर नहीं है और जिस तरह से जर्मनी के ऑटो बाजार में बीवाइडी को वरीयता मिली है उसे देखते हुए लगता है कि आने वाले समय में बीवाइडी टेस्ला को पीछे छोड़ देगी।
भारत में बीवाइडी बहुत जोर जोर से उतरने की तैयारी में थी। बीवाइडी कंपनी का भारतीय वेबसाइट लॉन्च हो गया था। बहुत जगह पर इन्होंने डीलर फाइनल कर लिए थे। तेलंगाना में कई हजार एकड़ जमीन ले ली गयी थी और भारत की जानी मानी इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी मेघा इंजीनियरिंग लिमिटेड के साथ इनकी पार्टनरशिप भी हो चुकी थी। तारीख भी तय हो गई थी जिस दिन जिनपिंग और नरेंद्र मोदी इस बड़े समझौते को जो लगभग एक बिलियन डॉलर का होता, उसे एक समारोह में फाइनल करेंगे।
लेकिन मोदी सरकार ने मेघा इंजीनियरिंग और बीवाइडी कंपनी की पार्टनरशिप को रद्द कर दिया और बीवाइडी की भारत में एंट्री बैन कर दी। ऐसा करके टेस्ला के सारे रास्ते साफ कर दिए गए और टेस्ला के लोग गुजरात, तमिलनाडु और बेंगलुरु में जमीन तलाशने लगे कि उनके लिए कौन सी जगह ज्यादा अच्छी रहेगी। यह धीरे से मगर जोर का तमाचा शीजिंग पिंग बर्दाश्त नहीं कर पाए क्योंकि भारत अब चीन के पेट पर एक के बाद एक लगातार लातें मार रहा है।
विशेषज्ञों का मत है कि आप दूसरे तमाम देशों में अपनी कार बेच सकते हैं लेकिन यदि आपको भारी मात्रा में काम करना है तो आपको भारत में आना ही पड़ेगा। उदाहरण हुंडई का है। हुंडई जितनी कार पूरी दुनिया के देशों में बेचती है उसकी 80ः कारें भारत में बेचती है, ठीक यही स्थिति सुजुकी के साथ है। सुजुकी और टोयोटा पूरी दुनिया में जितनी कारें बेचते हैं उसका 70ः अकेले भारत में बेचते हैं। भारत एक ऐसा देश है जहां आपको भारी मात्रा में स्थानीय काम मिलेगा लेकिन यदि आप भारत में काम नहीं कर रहे हैं तो फिर आप दुनिया के प्रतिस्पर्धी बाजार में टिक नहीं सकेंगे।
चीन के साथ भारत का व्यापार इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले 15 वर्षों से चीन भारत के आयात का शीर्ष स्रोत रहा है। 2007-08 में भारत के आयात में चीन की हिस्सेदारी करीब 10.8 फीसदी थी. यह धीरे-धीरे बढ़ता गया और 2017-18 में 16.4 प्रतिशत तक पहुंच गया। 2018-19 और 2019-20 के लिए इसमें लगभग 13.7 प्रतिशत की कमी आई लेकिन कोविड के बाद के दो वर्षों (अर्थात, 2020-21 और 2021-22) में, भारत के आयात में चीन की हिस्सेदारी 16.53 प्रतिशत (रिकॉर्ड उच्च) तक और क्रमशः 15.43 प्रतिशत पर पंहुच गयी थी। 2023 की प्रथम छमाही में इस आंकड़े में कमी आयी है और यह 6.70 प्रतिशत कम हुआ है। कुल मिलाकर स्थिति यह है कि मोदी देश को हर स्थिति में आत्मनिर्भर बना कर चीन के मकडजाल से बाहर आना चाहते हैं।
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)