राजस्थान में गोचर भूमि को बचाने की लड़ाई

राजस्थान में गोचर भूमि को बचाने की लड़ाई

अमरपाल सिंह वर्मा

राजस्थान में गोचर भूमि को बचाने के लिए लड़ाई लड़ी जा रही है। लंबे समय से लगातार हो रहे अतिक्रमणों के कारण गोचर भूमि सिमटती जा रही है। एक ओर जहां लालची लोगों में गायों के लिए सुरक्षित रखी गई इस जमीन को कब्जाने की होड़ लगी है, वहीं दूसरी ओर गायों और पर्यावरण के प्रति प्रेम रखने वाले लोग इसे मुक्त करवाने की कवायद में जुटे हैं। इसके लिए वह अदालतों के दरवाजे खटखटाए जा रहे हैं। शासन-प्रशासन को ज्ञापन भेजे जा रहे हैं। गांधीवादी तरीके से धरने और प्रदर्शनों का सहारा लिया जा रहा है। हाल में बीकानेर में हुए संयुक्त सम्मेलन में प्रदेश के 25 जिलों के गोचर भूमि के संरक्षण के लिए संघर्ष करने वाले प्रतिनिधियों ने गोचर को गायों के नाम के नाम करवाने के लिए बड़े आंदोलन का शंखनाद कर दिया है।

सम्मेलन में गोचर भूमि को गायों के नाम दर्ज करवाने, गोचर का पुनरू सीमांकन करने, राजस्थान काश्तकारी अधिनियम में आवश्यक संशोधन करने जैसी मांगों को व्यापक आंदोलन छेडने का संकल्प किया गया है। जाहिर है, गोचर भूमि के संबंध में सरकार के रुख से गोप्रेमी खुश नहीं हैं और उन्हें आंदोलन ही एक मात्र रास्ता दिखाई दे रहा है।

देश के सबसे बड़े राज्य राजस्थान में गोचर को बचाने का यह बड़ा मुद्दा है। पिछले साल गायों के प्रति आदर भाव रखने वाले लोगों ने लंबे अरसे तक आंदोलन करके सरकार को उस फैसले को ठंडे बस्ते में डालने पर मजबूर किया था, जिसके जरिए सरकार गोचर भूमि पर हुए अतिक्रमणों का नियमन करना चाहती थी। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अध्यक्षता में जयपुर में 15 दिसम्बर 2021 को हुई केबिनेट की बैठक में प्रदेश में चरागाह भूमि पर कम से कम तीस साल से मकान बना कर रह रहे लोगों को पट्टे देने की नीति के ड्राफ्ट को मंजूरी दी गई। इसके बाद 27 दिसम्बर को सरकार ने इस संबंध में नीति भी जारी कर दी। इस नीति में कहा गया कि चरागाह भूमि का वर्गीकरण परिवर्तन व्यापक जनहित में अन्य राजकीय भूमि की अनुपलब्धता होने पर किया जाएगा। नीति के तहत चरागाह भूमि पर कम से कम 30 वर्ष से घर बनाकर रह रहे परिवारों में से प्रति परिवार अधिकतम 100 वर्गमीटर का पट्टा दिया जाएगा। इस नीति से चरागाह भूमि पर बसे निर्धन परिवारों को पट्टा मिल सकेगा।

इस फैसले से गो-प्रेमियों में आक्रोश फैलना लाजिमी था क्योंकि समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने चरागाह भूमि से अतिक्रमण हटाने के आदेश दिए हैं जबकि इसके विपरीत सरकार ने अतिक्रमियों को पट्टे देने का फैसला कर लिया था। गो-प्रेमी इस आशंका से चिंतित हो उठे थे कि सरकार के फैसले से अतिकमियों को प्रोत्साहन मिलेगा और चरागाह भूमि पर अतिक्रमण बेतहाशा बढ़ जाएंगे। इससे गोचर भूमि का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।

चरागाह भूमि पर हुए अतिक्रमणों को नियमित करने के सरकारी फैसले के खिलाफ ग्रामीणों, साधु-संतों, गो प्रेमियों और पशुपालकों ने प्रदेश भर में धरने-प्रदर्शन किए। भैरों सिंह शेखावत सरकार में मंत्री रहे बुजुर्ग नेता देवी सिंह भाटी ने 13 जनवरी 2022 को बीकानेर जिले में गोचर भूमि में बेमियादी धरना शुरू कर दिया। उनके आंदोलन को व्यापक जन समर्थन मिला। राजस्थान के विभिन्न जिलों तथा पड़ोसी राज्यों से हजारों लोग रोजाना धरने पर भाटी के समर्थन में उमडने लगे। प्रशासन ने धरना समाप्त करने के लिए भाटी को रजामंद करने की खूब कोशिशें कीं लेकिन वह इस बात पर अड़े रहे कि जब तक सरकार उनकी मांगें स्वीकार नहीं कर लेती, तब तक धरना जारी रहेगा। भाटी के हठ के आगे अंततरू सरकार को झुकना पड़ा और धरने के 44 वें दिन 24 फरवरी, 2022 को सरकार ने भाटी से समझौता कर गोचर के संरक्षण और उसके विकास के मुद्दे पर लिखित आश्वासन देकर आंदोलन समाप्त करवाया।

भाटी से हुई वार्ता में गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, राजस्व विभाग के प्रमुख शासन सचिव और ग्रामीण विकास व पंचायती राज विभाग के शासन सचिव जैसे आला अधिकारी शामिल रहे थे। बीकानेर के तत्कालीन संभागीय आयुक्त ने लिखित समझौता करके तमाम मांगें मान ली थीं। अब प्रश्न यह उठता है कि गो-प्रेेमियों को हाल में फिर से बड़ा आंदोलन करने का निर्णय क्यों लेना पड़ा है? गोचर-ओरण संरक्षक संघ के संयोजक सूरजमल सिंह नीमराणा कहते हैं कि लिखित समझौते के क्रियान्वयन के लिए जरूरी कदम आज तक सरकार ने नहीं उठाए हैं।

वार्ता के दौरान गोचर व चरागाह की जमीन पर जल संग्रहण संरचनाओं के अतिरिक्त अन्य कोई निर्माण कार्य न करने, सरकार द्वारा 27 दिसम्बर को जारी पॉलिसी का परीक्षण गाय के हित में करके ही उचित निर्णय किए जाने और राजस्व अधिनियम में संशोधन की मांग को अधिकारियों ने स्वीकार किया था। तब लिखित समझौते में बीकानेर संभाग के संभागीय आयुक्त ने यह आश्वासन दिया था कि ‘‘गोचर, ओरण, चारागाह के संरक्षण एवं विकास के समस्त उपलब्ध उपायों का क्रियान्वयन प्रभारी तरीके से किया जाएगा। इनमें हो रहे अतिक्रमण को यथा शीघ्र हटाकर मनरेगा के माध्यम से विकास व संरक्षण किया जाएगा। अगर कोई राजकीय भूमि चारागाह गोचर व ओरण के रूप में उपयोग को जा रही है और राजकीय रिकॉर्ड में उसका अंकन नहीं है तो सक्षम अधिकारी द्वारा मौका निरीक्षण कर उसका राजस्व अभिलेख में अंकन करने की प्रभावी कार्यवाही की जाएगी। गोचर, ओरण, चारगाह के संरक्षण, सुरक्षा एवं विकास के लिए तहसील एवं पंचायत स्तर पर कार्ययोजना बनाकर मैकेनिज्म को सक्रिय किया जाएगा।’’

हकीकत में, उपरोक्त समझौता कागजी बनकर रह गया है। गो- प्रेमियों ने एक साल तक इंतजार किया है कि सरकार कुछ करेगी लेकिन अब उनके सब्र का बांध टूट रहा है। बीकानेर में आयोजित सम्मेलन में प्रदेश के 33 में से 25 जिलों के प्रतिनिधि शामिल हुए। उन्होंने एक मत से गोचर-ओरण संरक्षक संघ का गठन करके बुजुर्ग नेता देवी सिंह भाटी को इसका प्रदेश संयोजक बनाया है। संघ में सभी सातों संभागों से एक-एक सदस्य लेकर सात सह संयोजक और सभी 33 जिलों से 33 प्रतिनिधि शामिल किए गए हैं। आगामी बैठक में गोचर को बचाने के लिए संयुक्त एजेंडार तय होगा और व्यापक आंदोलन की रूपरेखा घोषित कर दी जाएगी।

राजस्थान में 88,56,101 हेक्टेयर भूमि है, जो कुल उपलब्ध भूमि का 41.8 प्रतिशत है, इसमें से 9,11,233 हेक्टेयर स्थायी गोचर भूमि, 70,50,577 हेक्टेयर ऊसर भूमि (लवणीय) और 8,93,691 हेक्टेयर सीमांत भूमि है। प्रदेश के गांवों में गोचर भूमि सामुदायिक उपयोग के लिए है और पंचायतों के अधीन आती है। लिहाजा, उस पर किसी व्यक्ति विशेष का अधिपत्य नहीं हो सकता है। घास के मैदानों से अटी पड़ी यह जमीन पशुओं का पेट भरने के लिए है लेकिन दुखद है कि इस जमीन पर जगह-जगह अतिक्रमण कर लिए गए हैं। लोगों ने न केवल इस पर बस्तियां बसा ली हैं, बल्कि खेती भी कर रहे हैं। अत्यधिक अतिक्रमणों के बावजूद राज्य में लाखों हेक्टेयर गोचर भूमि अभी भी अपने मूल स्वरूप में पड़ी हुई है जिसे बचाने के प्रयास हो रहे हैं। जब भी कहीं कोई व्यक्ति गोचर भूमि पर अतिक्रमण करता है तो समुदाय के लोग प्रशासन के समक्ष गुहार लगाकर अतिक्रमण हटाने की मांग करते हैं। यदि प्रशासनिक स्तर पर उनकी सुनवाई नहीं होती तो अदालत की शरण ली जाती है क्योंकि समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में निर्णय देकर यह प्रतिपादित किया है कि चरागाह भूमि का उपयोग केवल उन्हीं उदद्ेश्यों के लिए किया जा सकता है, जिसकी अनुमति है।

सुप्रीम कोर्ट का 2011 का जगपाल सिंह बनाम पंजाब सरकार मामले में दिया निर्णय इस संबंध में प्रमुख है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के एक मामले में 2021 में भी एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। ऐसे ही राजस्थान हाई कोर्ट के भी फैसले हैं। राजस्थान हाई कोर्ट ने जगदीश प्रसाद मीना और अन्य बनाम राजस्थान राज्य मामले में 30 जनवरी 2019 को राजस्थान के सभी 33 जिलों में संबंधित जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में पब्लिक लैंड प्रोटेक्शन सेल (पीएलपीसी) के गठन कर गोचर भूमि से अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया। कोर्ट के आदेश पर सभी जिलों में पीएलपीसी बनाई जा चुकी हैं लेकिन उनके जरिए कोर्ट की भावना के अनुरूप काम नहीं हो रहा है। लोग पीएलपीसी से संतुष्ट नहीं हैं।

गोचर से न सिर्फ पशुओं को चारा मिलता है, बल्कि यह जमीन विभिन्न प्रकार के पेड़, पौधे, झाडियों, घास, जड़ी-बूटियां, औषधियां और खाना पकाने के लिए ईंधन भी मुहैया करवाती है। ज्यादातर जलस्रोत भी गोचर पर ही हैं। गोचर भूमि वन्यजीवों की कई प्रजातियों का प्राकृतिक आवास भी है। मरू प्रदेश के लिए चरागाह, गोचर भूमि बहुत जरूरी है। गोचर पर अतिक्रमण सिर्फ एक जमीन पर अतिक्रमण नहीं है बल्कि यह पशुओं के जीने के अधिकार का अतिक्रमण है। राजस्थान ऐसा प्रदेश है, जो बार-बार अकाल झेलता है और इसलिए पशुपालन यहां के निवासियों का मुख्य व्यवसाय है। पशुओं की अधिकता के कारण चारे की मांग इसके उत्पादन के मुकाबले अधिक रहती है। सेवण और धामन घास के रूप में चारे की आपूर्ति चरागाह व गोचर भूमि से ही होती रही है मगर चरागाहों के निरंतर घटते चले जाने से चारे का परंपरागत स्रोत सिकुड़ रहा है। आज तो गोचर पर अतिक्रमणों को केवल पशुओं के हितों के ही विपरीत देखा जा रहा है, लेकिन यदि गोचर भूमि को बचाया नहीं गया तो यह मानव जीवन के लिए कई तरह की मुश्किलों को न्योता होगा। गोचर भूमि का खत्म होना पर्यावरणीय असंतुलन की वजह भी बनेगा।

(युवराज)

आलेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इससे जनलेख प्रबंधन का कोई लेनादेना नहीं है।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »