India That is BHARAT/ मोदी का इण्डिया पर तुरुप का इक्का

India That is BHARAT/ मोदी का इण्डिया पर तुरुप का इक्का

राज सक्सेना

भारत विविधताओं का देश है। इसकी नस-नस में विविधताओं का समावेश है। विश्व में कोई भी देश ऐसा नहीं है जिसके कई नाम प्रचलन में हों या भारत को छोड़ कर किसी भी देश का नाम संविधान में ही दो नामों से अंकित हो, ऐसा कहीं नही है। नेता लोग किस तरह से संविधान की खामियों का फायदा उठाने की ताक में हर समय लगे रहते हैं, इसका सबसे ताजा उदाहरण 26 विरोधी दलों ने मोदी हटाओ मोर्चे का गठन करते समय अपने गठबंधन का नाम इस तरह रखा कि उसका लघुरूप ‘इण्डिया’ हो जाये। कई दिनों तक विरोधी नेता और प्रवक्ता जब इण्डिया शब्द का दुरुपयोग करते रहे तो मोदी ने शायद दूसरे नाम का उपयोग करने का मन बनाकर संसद का विशेष सत्र आहूत कर लिया। आम चर्चा है कि इस सत्र में इण्डिया नाम हटा कर देश का नाम आधिकारिक रूप से ‘भारत’ करने का संविधान संशोधन पारित कर दिया जाएगा।

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार 18 से 22 सितंबर तक होने वाले संसद के विशेष सत्र में इंडिया का नाम बदलकर भारत करने पर प्रस्ताव ला सकती है। इतना ही नहीं, भारत के राष्ट्रपति की ओर से दिए जा रहे रात्रिभोज जी-20 के निमंत्रण पत्र पर प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया की जगह प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखा गया है। इसका सबसे पहले उल्लेख कांग्रेस के जयराम रमेश ने अपने ट्वीट में किया है। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है। कई देश अपना नाम बदल चुके हैं। इस चर्चा के चलते देश का नाम भारत कब पड़ा और कैसे पड़ा, यह जानने की उत्सुकता लोगों में बढ़ गई है।
भारत भूमि को प्राचीन काल से कई अलग-अलग नाम से जाना जाता रहा है, जैसे जम्बू द्वीप, भारत खंड, भारतवर्ष, आर्यावर्त, हिंद, हिंदुस्तान और इंडिया लेकिन इन सबमें भारत नाम सबसे ज्यादा प्रचलित रहा है। इस कारण से भारत नाम कब क्यों और कैसे पड़ा, इसको लेकर सबसे ज्यादा धारणाएं और मतभेद हैं। अलग-अलग कालखंडों में भारत को अलग-अलग नाम दिए गए हैं। पौराणिक युग में भरत नाम के कई व्यक्ति हुए हैं। अलग-अलग समय पर इन महान व्यक्तियों के नाम पर भारत का नाम रखने का दावा किया जाता रहा है। सबसे प्रचलित पौराणिक कहानी को मानें तो भारतवर्ष नाम ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर पड़ा है। अनेक पुराणों के मुताबिक भगवान ऋषभदेव के पुत्र भरत चक्रवर्ती के नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा है। हिंदू ग्रंथ स्कंध पुराण अध्याय 37 के मुताबिक नाभिराज के पुत्र थे ऋषभदेव और ऋषभदेव के पुत्र भरत थे, उनके ही नाम पर इस देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। ज्यादातर लोग भरत नाम के पीछे की वजह शकुंतला और सूर्यवंशी राजा दुष्यंत के पुत्र भरत को मानते हैं। महाभारत के आदि पर्व में इस बात का जिक्र है कि महर्षि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका की बेटी शकुंतला और राजा दुष्यंत के बीच गंधर्व विवाह हुआ था. इन दोनों के पुत्र का नाम भरत हुआ था। कथन है कि भरत के जन्म के बाद कंडव ऋषि ने आशीर्वाद दिया था कि भरत आगे चलकर चक्रवर्ती सम्राट बनेगा और उसके नाम पर इस भूखंड का नाम भारत प्रसिद्ध होगा, इसलिए इसे भारतवर्ष कहा गया। इसके अलावा नाट्यशास्त्र वाले भरत मुनि भी इस नाम के पीछे की वजह हो सकते हैं। इतना ही नहीं भारत के नामकरण के सूत्र जैन धर्म भी मिलते हैं।

नामकरण पर सियासत भारतीय राजनीति का लंबे समय से हिस्सा रही है। इतिहास, राजनीति और पुरातात्विक इतिहास की दुनिया के विवादित लोकप्रिय और अक्सर किसी भी सभ्यता विशेष को इंगित करने वाले नाम राजनीतिक विवादों का कारण बने हैं, बात चाहे इलाहाबाद के प्रयागराज की हो या फिर औरंगाबाद के छत्रपति संभाजीनगर हो जाने की, या फिर भारत के संविधान से इंडिया शब्द को हटा दिए जाने की। दरअसल किसी भी राष्ट्र का नाम उस देश की अस्मिता और ऐतिहासिक धरोहरों के गौरव को प्रत्यक्ष रूप से दर्शाता है। वहां के नागरिकों को उसके इतिहास, संस्कृति और सभ्यता के प्रति गौरव की याद दिलाता है। राष्ट्रों के नाम वहां के जनमानस की धारा में बहते इतिहास का अभिमान ही रहे हैं और इसके साथ किसी भी तरह का बदलाव अक्सर राजनैतिक दंगल का कारण बना है। बहरहाल इस समय भारतीय राजनीति राष्ट्र के नाम को लेकर विवादों के केंद्र में आ चुकी है।

वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी सरकार को चुनौती देने के लिए अस्तित्व में आये विपक्ष का नया नाम ‘इंडिया’ इस समय पहले दिन से ही अपने नाम को लेकर निशाने पर है। वहीं अब भाजपा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने भारतीय संविधान में लिखे शब्द इंडिया को हटाने की मांग उठा दी है। उन्होंने कहा है कि इंडिया शब्द अंग्रेजों द्वारा दी गई एक गाली है जबकि भारत शब्द हमारी संस्कृति का प्रतीक है। मैं चाहता हूं कि संविधान में बदलाव हो और इसमें भारत शब्द जोड़ा जाए, ऐसा हरनाथ सिंह ने कहा। कुछ दिनों पहले भाजपा के राज्यसभा सदस्य नरेश बंसल ने भी संविधान से इंडिया शब्द हटाने की मांग की थी। वह कह चुके हैं इंडिया शब्द औपनिवेशिक दासता का प्रतीक है और इसे हटाया जाना चाहिए। इस सम्बन्ध में एक याचिका भी सुप्रीमकोर्ट में दी जा चुकी है। प्रधानमंत्री मोदी भी 25 जुलाई को भाजपा संसदीय दल की बैठक में विपक्षी प्रबंधन आई. एन. डी. आई. ए. पर निशाना साध चुके हैं।

अंग्रेजों के आगमन के साथ ही उस समय हिंदुस्तान के रूप में चर्चित हमारा देश इंडस वैली यानी कि सिंधु घाटी की सभ्यता के रूप में भी पहचाना जाता था, को अंग्रेजों ने इसे इंडस वैली के लिए लैटिन में प्रयोग होने वाले शब्द इंडस को ही हमारे देश का नाम दे दिया और इस तरह हमारे देश का नाम इण्डिया पड़ा।

अब बात जरा संविधान के दायरे और आईने में करें तो संविधान बनने की प्रक्रिया जहां लंबी थी, वहीं यह कई तरह के मतभेदों के बीच चलती रही। जाहिर था जब राष्ट्र के नाम की बात आई हो ,वह भी कोई कम सरल कार्य नहीं था। संविधान सभा में भारत के नामकरण को लेकर बहस का लंबा दौर चला। कुछ सदस्य भारत को श्भारतश् नाम रखने के प्रस्ताव पर अड़े थे तो वहीं नेहरु जैसे अंग्रेजियत में रंगे लोग इसे इण्डिया बनाने पर तुले थे, कुछ सदस्य श्भारतवर्षश् नाम रखने के लिए प्रस्ताव रख रहे थे तो कुछ सदस्यों ने श्हिन्दुस्तानश् नाम रखने का प्रस्ताव भी रखा था। बहस में सेठ गोविंद दास, कमलापति त्रिपाठी, श्रीराम सहाय, हरगोविंद पंत और हरि विष्णु कामथ जैसे नेता भिड़े हुए थे। हरि विष्णु कामथ ने सुझाव दिया था कि भारत को भारत या फिर इंडिया के रूप में बदल दिया जाए मगर अंत में इस प्रस्ताव के पक्ष में बहस करते हुए, डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था-

श्इंडियाश् नाम एक अंतरराष्ट्रीय नाम है जिसे दुनिया भर में जाना जाता है और यह नाम भारत के विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों को भी दर्शाता है। नेहरु और अंग्रेजियत ने रंगे अनेक सदस्यों ने इसका समर्थन किया और संविधान में ‘इण्डिया दैट इस भारत’ रख दिया गया।

(युवराज)

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