‘‘धीरज बनाए रखिए और अपने अंदर खुशी खोजिए, जो न समझ में आए उसे भगवान पर छोड़ दीजिए’’

‘‘धीरज बनाए रखिए और अपने अंदर खुशी खोजिए, जो न समझ में आए उसे भगवान पर छोड़ दीजिए’’

प्रेम रावत जी

जो कुछ भी हमारे आस-पास हो रहा है, इससे हम प्रभावित होते हैं। जब हमारे इच्छानुसार चीजें होती हैं तो हमको खुशी होती है। जब इच्छानुसार चीजें नहीं होती हैं तो हमको दुख होता है। प्रकृति तो वही कर रही है जो उसको करना है, जो वह करती आयी है। हजारों-करोड़ों साल हो गये हैं पृथ्वी को घूमते हुये, सूरज उगता है, चंद्रमा चमकता है। रात भी होती है दिन भी होता है। और एक मनुष्य है जो आता है और फिर चला जाता है। परंतु मनुष्य होने का मतलब क्या है ? मनुष्य व्यस्त है क्योंकि उसको नौकरी करनी है। और नौकरी इसलिए करनी है क्योंकि उसको रहने के लिए छत चाहिए, खाने के लिए खाना चाहिए और इन सारी चीजों के लिए उसको नौकरी करनी है। धन कमाना है, क्योंकि धन से फिर वह खाना खरीद सकता है, मकान खरीद सकता है, कपड़ा खरीद सकता है, ये सारी चीजें कर सकता है। और इस संसार में लोग इसी चीज को मानकर चलते हैं। परंतु क्या यही मकसद है मनुष्य का इस संसार में आने का कि वह इस संसार में आये और इस संसार में आने के बाद नौकरी करे और नौकरी के बाद धन कमाये और उस धन की कमी को महसूस करे।

परंतु यह मनुष्य शरीर मिला क्यों ? इससे क्या करेंगे ? यह किस चीज का साधन है ? क्या ऐसी चीज है जिसको हम आनंद कह सकते हैं? इस संसार के अंदर जो सब कर रहे हैं; क्योंकि सब कर रहे हैं तो इसका यह मतलब नहीं है कि वह ठीक हो गया। क्या कारण है जो यह मनुष्य शरीर मिला है ? क्यों सबकुछ होने के बावजूद भी मनुष्य खुश नहीं है ? क्या ऐसी चीज है कि एक छोटा-सा कीटाणु, एक छोटी-सी वायरस जिसने इस सारे संसार में तबाही ला दी। बड़े-बड़े देशों को हिलाकर रख दिया। तो अब प्रश्न यह उठता है कि सबकुछ होने के बाद भी मनुष्य ताकतवर है या कमजोर है ? जब मनुष्य ने अपने गुण को ही नहीं समझा तो वह कमजोर ही होगा, क्योंकि जिन चीजों में मनुष्य लगा हुआ है, उन चीजों के लिए मनुष्य नहीं बना है।

जब यह कोरोना वायरस आया तो गवर्नमेंट ने कहा, “आइसोलेशन में जाओ।” ‘आइसोलेशन में जाओ’ का मतलब “बाहर मत जाओ, अपने घर में रहो।” पर लोग घरों में नहीं रह सकते। जब घर में रहना ही नहीं है, तो घर बनाया ही क्यों? घर इसलिए बनाया है क्योंकि उसकी जरूरत है। तो मनुष्य अपने साथ नहीं रह सकता। औरों के साथ रहने की उसकी इच्छा है। औरों के साथ उठना-बैठना उसके लिए ठीक है। औरों के साथ बातें करना, उसके लिए मनुष्य समझता है कि वह ठीक है। इन सब चीजों के बावजूद जो अभाव मनुष्य महसूस कर रहा है, वह इसलिए कर रहा है, क्योंकि वह अपने आपको नहीं जानता। अगर वह अपने आपको जानता तो उसको इन चीजों से डर नहीं लगेगा। इन चीजों के होने के बावजूद भी, वह अपने साथ रह सकता है।

जब आप अपने आपको जानेंगे तब आप समझ पायेंगें कि आपका गुण क्या है। क्योंकि आपके अंदर करूणा भी है, दया भी है। खुश होना भी आपके अंदर है। क्योंकि लोगों को लगता है कि दुनिया हमको दुखी कर रही है। परन्तु ऐसा नहीं है। दुख भी आपके अंदर है और सुख भी आपके अंदर है, इसका दुनिया से कोई लेना-देना नहीं है। और जिस दिन आप यह बात जान जायेंगे और इस बात को पूरी तरीके से स्वीकार कर लेंगे कि दुख भी हमारे अंदर है और सुख भी हमारे अंदर है तो फिर दुखी होने की जरूरत नहीं होगी।

खोजिये उस चीज को जो आपके अंदर है जिससे कि आप खुश हो सकते हैं। रोना भी आपके अंदर है, हंसना भी आपके अंदर है। आप समझते हैं कि ये सारी चीजें बाहर से आती हैं। जिस दिन आप यह समझ जायेंगे कि ये चीजें बाहर से नहीं आती हैं ये चीजें आपके अंदर हैं। जिस दिन आप यह समझ जायेंगे कि आपको परेशान कोई बाहर वाला नहीं कर रहा है, आप खुद ही अपने आपको परेशान कर रहे हैं उस दिन आपकी दुनिया बदल जायेगी, क्योंकि फिर आप दुनिया को उस तरीके से नहीं देखेंगे। दोस्ती उससे करेंगे, जो आपके अंदर बैठा है। इसका यह मतलब नहीं है कि बाहर आपके दोस्त नहीं होंगे। होंगे, पर उनसे क्या अपेक्षा करोगे वो बात बदल जायेगी। और किसी भी कारण सारी चीजें छोड़ करके अगर आपको अपने साथ रहने के लिए, अपने साथ होना पड़ा तो आप उसके लिए दुखी नहीं होंगे। चाहे वह कोई मजबूरी हो या कोरोना वायरस हो या कुछ अन्य भी हो।

यह बात समझने की है। अपने गुण को समझिये कि आपका असली गुण क्या है। अपने आपको जानने की कोशिश कीजिये। क्योंकि अगर अपने आपको जान नहीं पायेंगे तो जो कुछ भी हो रहा है वह आपके समझ में कभी नहीं आयेगा। यह जो समय है धीरज बनाये रखने का है। अपने अंदर शांति बनाये रखें। बाहर जो हो रहा है, वो हो रहा है, आप अपने अंदर शांति बनाये रखें। डरो मत, डर की बात नहीं होनी चाहिए। यह समय भी गुजरेगा। आनंद लो, इस जीवन के अंदर यह स्वांस जो आपके अंदर चल रहा है, इसका पूरा-पूरा फायदा उठायें और अपने असली गुण को समझें।

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